aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "सच्चाई"
कितनी सच्चाई से मुझ से ज़िंदगी ने कह दियातू नहीं मेरा तो कोई दूसरा हो जाएगा
मैं खुली हुई इक सच्चाई मुझे जानने वाले जानते हैंमैं ने किन लोगों से नफ़रत की और किन लोगों को प्यार दिया
एक इक बात में सच्चाई है उस की लेकिनअपने वादों से मुकर जाने को जी चाहता है
कुछ न कुछ सच्चाई होती है निहाँ हर बात मेंकहने वाले ठीक कहते हैं सभी अपनी जगह
एक इक बात में सच्चाई है उस की लेकिनअपने वा'दों से मुकर जाने को जी चाहता है
मौत सब से बड़ी सच्चाई और सब से तल्ख़ हक़ीक़त है। इस के बारे मे इंसानी ज़हन हमेशा से सोचता रहा है, सवाल क़ाएम करता रहा है और इन सवालों के जवाब तलाश करता रहा है लेकिन ये एक ऐसा मुअम्मा है जो न समझ में आता है और न ही हल होता है। शायरों और तख़्लीक़-कारों ने मौत और उस के इर्द-गिर्द फैले हुए ग़ुबार में सब से ज़्यादा हाथ पैर मारे हैं लेकिन हासिल एक बे-अनन्त उदासी और मायूसी है। यहाँ मौत पर कुछ ऐसे ही खूबसूरत शेर आप के लिए पेश हैं।
ज़िन्दगी की कड़वी सच्चाई कईं बार दर्द की सूरत में बाहर निकलती है.l शायरी दर्द की अवस्था को न सिर्फ दिशा देता है बल्कि ऐसे समय में हमें स्थिरता भी प्रदान करता है ताकि ज़िन्दगी की निरंतर संघर्ष सहज हो l
सच और झूठ, हक़ और बातिल की जंग नई नहीं। सच बोलना और सच का साथ देना किसी भी ज़माने में हौसले का काम रहा है। झूठ की ताक़त डराने के लिए हमेशा से इस्तेमाल होती रही है। शायरी ने इन तमाम पहलुओं पर अलग-अलग अन्दाज़ से निगाह डाली है। आइये जानते हैं सच शायरी की सच्चाई रेख़्ता के इस इन्तिख़ाब की मदद सेः
सच्चाईسچائی
truth, honesty, purity
रूस-ओ-इंग्लिस्तान का सच्चा हाल
मोहम्मद महफ़ूज़
इतिहास
बेसदा हो जाएगा ये साज़-ए-हस्ती एक दिन इंसान जब ज़िन्दगी की मुसीबतों से परेशान हो जाता है तो उसे दुनिया छोड़ने की सूझती है। अपने को धोका देने और ग़लत रास्ते पर चलने को अक्सर लोग ख़ुदा की तलाश या सच्चाई का पा जाना समझते हैं। लेकिन इस सच्चाई की...
सच्चाई तो ये है कि तिरे क़र्या-ए-दिल मेंइक वो भी ज़माना था कि मैं ख़ूब रहा हूँ
बात से बात की गहराई चली जाती हैझूट आ जाए तो सच्चाई चली जाती है
समझने ही नहीं देती सियासत हम को सच्चाईकभी चेहरा नहीं मिलता कभी दर्पन नहीं मिलता
जब तक है दिलों में सच्चाई सब नाज़-ओ-नियाज़ वहीं तक हैंजब ख़ुद-ग़र्ज़ी आ जाती है जुल होते हैं घातें होती हैं
होता चला आया है बे-दर्द ज़माने मेंसच्चाई की राहों में काँटे सभी बोते हैं
दारोग़-गोई को सच्चाई का पयाम कहूँजो राहज़न है उसे रहबर-ए-अवाम कहूँ
ऐसे ही कुन्दन भी ब्याहा गया। इन शादियों में इंदू ही “हथ भरा” करती थी और माँ की जगह खड़ी हो जाती। आसमान से बाबू जी और माँ देखा करते और फूल बरसाते जो किसी को नज़र न आते। फिर ऐसा हुआ, ऊपर माँ और बाबू जी में झगड़ा चल...
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