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ग़ज़ल
निहाल सब्ज़ रंग में जमाल जिस का है 'मुनीर'
किसी क़दीम ख़्वाब के मुहाल में मिला मुझे
मुनीर नियाज़ी
तंज़-ओ-मज़ाह
“सब्ज़-रंग की।” “सब्ज़-रंग की? (कुछ देर सोच कर) ओह आपका मतलब है ग्रीन बरसाती, अच्छा लाता हूँ।”...
शफ़ीक़ुर्रहमान
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ग़ज़ल
मैं लोट हो गया हूँ ख़त-ए-सब्ज़-रंग पर
ख़ार-ए-चमन से दामन-ए-दिल पे अटक गया
मिर्ज़ा मासिता बेग मुंतही
नज़्म
जज़्बात नफ़सियात से बाला-तर हैं
नामों में सब्ज़ रंग भरते हैं
इस सुर्ख़ दाएरे में
उमैननुज़ ज़हरा सय्यद
नज़्म
अक्टूबर इश्क़ की हवा जैसा है
इक सब्ज़ रंग का मिलाप है
सूरज अपनी रौशनी की सफ़ेदी को उतार कर