aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
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परिणाम "सर-ए-बाम-ए-नवा"
बज़्म-ए-सदफ इंटरनेशनल
योगदानकर्ता
बज़म-ए-इक़बाल, लाहाैर
संपादक
बज़्म-ए-गुलिस्तान-ए-उर्दू
पर्काशक
हलक़ा-ए-बज़्म-ए-अदब, ललितपुर
बज़्म-ए-तामीर-ए-नो, भोपाल
बज़्म-ए-इर्तिक़ा-ए-अदब कराची
बज़्म-ए-फ़रोग़-ए-उर्दू, बुरहानपुरी
बज़्म-ए-जिगर, बिशम्भरपुर
बज़्म-ए-निहाल-ए-सुखन, आलमपुर
बज़्म-ए-तामीर-ए-उर्दू, मऊनाथ भंजन
संग-ए-मील पब्लिकेशन्स, लाहौर
बजम-ए-फ़रोग़-ए-उर्दू, जालंधर
बज़्म-ए-उर्दू अदब, मैसूर
अराकीन-ए-बज़्म-ए-सीरत-ए-सहाबा कमेटी, बनारस
सदर-ए-मोहकमा मोतमती
पस-ए-मौज-ए-हवा बारिश का बिस्तर सा बिछानेसर-ए-बाम-ए-नवा बादल का टुकड़ा हो रहा है
बैठे हैं सर-ए-बाम-ए-फ़लक ज़ुल्फ़ बिखेरेजैसे कि कहीं डाले हों बंजारों ने डेरे
सर-ए-बाम-ए-हिज्र दिया बुझा तो ख़बर हुईसर-ए-शाम कोई जुदा हुआ तो ख़बर हुई
चाँद निकला है सर-ए-बाम लब-ए-बाम आओदिल में अंदेशा-ए-अंजाम न आने पाए
वो सर-ए-बाम कब नहीं आताजब मैं होता हूँ तब नहीं आता
हम आम तौर पर दुश्मन से दुश्मनी के जज़्बे से ही वाबस्ता होते हैं लेकिन शायरी में बात इस से बहुत आगे की है। एक तख़्लीक़-कार दुश्मन और दुश्मनी को किस तौर पर जीता है, उस का दुश्मन उस के लिए किस क़िस्म के दुख और किस क़िस्म की सहूलतें पैदा करता है इस का एक दिल-चस्प बयान हमारा ये शेरी इन्तिख़ाब है। हमारे इस इन्तिख़ाब को पढ़िए और अपने दुश्मनों से अपने रिश्तों पर अज़-सर-ए-नौ ग़ौर कीजिए।
अल्लामा इक़बाल की शख़्सियत एक अह्द-साज़ शायर और फ़लसफ़ी के तौर पर जानी और पहचानी जाती है। इस कलेक्शन में उनकी कुछ ग़ज़लें शामिल हैं और ख़ास बात ये है कि आप इन ग़ज़लों को ज़िया मोहीउद्दीन की आवाज़ में सन भी सकते हैं।
शहरों को मौज़ू बना कर शायरों ने बहुत से शेर कहे हैं, तवील नज़्में भी लिखी हैं और शेर भी। इस शायरी की ख़ास बात ये है कि इस में शहरों की आम चलती फिरती ज़िंदगी और ज़ाहिरी चहल पहल से परे कहीं अन्दुरून में छुपी हुई कहानियाँ क़ैद हो गई हैं जो आम तौर पर नज़र नहीं आतीं और शहर बिलकुल एक नई आब-ओ-ताब के साथ नज़र आने लगते हैं। आगरा पर ये शेरी इन्तिख़ाब आप को यक़ीनन उस आगरा से मुतआरिफ़ करायेगा जो वक़्त की गर्द में कहीं खो गया है।
सर-ए-बाम-ए-नवाسر بام نوا
on the top of voice
शोला-ए-नवा
तिलोकचंद महरूम
काव्य संग्रह
मतालिब-ए-बाल-ए-जिबरील
ग़ुलाम रसूल मेहर
व्याख्या
फ़रोग़-ए-नवा
रईस अहमद नोमानी
हरीफ़ान-ए-बाद-ए-पैमाँ
मुस्लिम अज़ीमाबादी
सफ़र-ए-मीना
अशफ़ाक़ अहमद
इंतिख़ाब-ए-नव
शोबा-ए-उर्दू, दिल्ली यूनिवर्सिटी, दिल्ली
संकलन
सहर-ए-मोबीन
मुबीन सिद्दीक़ी
ख़ुतूत-ए-मशाहीर
नैयर मसूद
पत्र
ग़ालिब
टी एन राज़
ग़ालिब का सफ़र-ए-कलकत्ता और कलकत्ते का अदबी मार्का
ख़लीक़ अंजुम
शोध
फ़िक्र-ए-इंसानी का सफ़र-ए-इर्तिक़ा
वाजा ग़ुलामुस सय्यदैन
Shumara Number-000
चौधरी सय्यद अब्दुर्रहमान
Jan 1966बांग-ए-सहर
Shumara Number-048
दुआ अली
Jun 2022बाब-ए-दुआ
Shumaara Number-008, 009
फ़ारिग़ बुख़ारी
Jan, Feb 1974संग-ए-मील
मज़ामीन-ए-नव
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
आलोचना
लाख ख़ुर्शेद सर-ए-बाम अगर हैं तो रहेंहम कोई मोम नहीं हैं कि पिघल जाएँगे
सुनते हैं चमकता है वो चाँद अब भी सर-ए-बामहसरत है कि बस एक नज़र देख लें हम भी
जब सर-ए-बाम वो ख़ुर्शीद-जमाल आता हैज़र्रे ज़र्रे पे क़यामत का जलाल आता है
इक शक्ल बे-इरादा सर-ए-बाम आ गईफिर ज़िंदगी में फ़ैसले की शाम आ गई
जब कोई भी ख़ाक़ान सर-ए-बाम न होगाफिर अहल-ए-ज़मीं पर कोई इल्ज़ाम न होगा
तुम सर-ए-बाम आ करउठाया हुआ हाथ अपना हिला कर
एक मुद्दत से सर-ए-बाम वो आया भी नहींहम को अब हसरत-ए-दीदार-ए-तमन्ना भी नहीं
वो दिन गए कि छुप के सर-ए-बाम आएँगेआना हुआ तो अब वो सर-ए-आम आएँगे
वो सर-ए-शाम बाम पर आएमुँह को पूरब में इस तरह मोड़ा
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