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नज़्म
कातिक का चाँद
ये बड़ा चाँद चमकता हुआ चेहरा खोले
बैठा रहता है सर-ए-बाम-ए-शबिस्ताँ शब को
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
तू भी हरे दरीचे वाली आ जा बर-सर-ए-बाम है चाँद
हर कोई जग में ख़ुद सा ढूँडे तुझ बिन बसे आराम है चाँद
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
भगवान 'कृष्ण' की तस्वीर देख कर
मुझे तेरे तसव्वुर से ख़ुशी महसूस होती है
दिल-ए-मुर्दा में भी कुछ ज़िंदगी महसूस होती है