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ग़ज़ल
तसव्वुर ने दिखाया शाहिद-ए-मक़्सूद का जल्वा
उतर आई है लैला सर-ज़मीन-ए-दिल पे महमिल से
यगाना चंगेज़ी
ग़ज़ल
'इश्क़ आख़िर 'इश्क़ था जैसा भी था जितना भी था
सर-ज़मीन-ए-दिल पे इक परचम तो लहराता रहा
शाहीन अब्बास
ग़ज़ल
वफ़ा की सल्तनत इक़्लीम-ए-वादा सर-ज़मीन-ए-दिल
नज़र की ज़द में है ख़्वाबों से ताबीरों के किश्वर तक
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
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ग़ज़ल
है ज़र्रा ज़र्रा पर सदा अहलव-व-सहलन मर्हबा
क्या सर-ज़मीन-ए-दिल पे है वो आज शाम आया हुआ
अहमद जावेद
शेर
सर-ज़मीन-ए-हिंद पर अक़्वाम-ए-आलम के 'फ़िराक़'
क़ाफ़िले बसते गए हिन्दोस्ताँ बनता गया