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ग़ज़ल
समझ सकते नहीं जो तेरे माथे की शिकन साक़ी
वो क्या जानें कि है बादा-कशी भी एक फ़न साक़ी
एहसान दरबंगावी
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ग़ज़ल
सहूँ न हिज्र के सदमे कभी विसाल के बाद
कोई ख़याल नहीं दिल में इस ख़याल के बाद
सय्यद अमीर हसन बद्र
नज़्म
दिल्ली में हैं
आह क्या क्या आज-कल रंगीनियाँ देहली में हैं
रास्तों पर चलती-फिरती बिजलियाँ देहली में हैं
इज़हार मलीहाबादी
नज़्म
सदा ब-सहरा
सखी फिर आ गई रुत झूलने की गुनगुनाने की
सियह आँखों की तह में बिजलियों के डूब जाने की