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नज़्म
नक़्श-ए-पा
हज़ार बार चाहता हूँ बंदिशों को तोड़ दूँ
मगर ये आहनी रसन ये हल्क़ा-हा-ए-बंदगी
अख़्तरुल ईमान
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ग़ज़ल
क़फ़स क्या हल्क़ा-हा-ए-दाम क्या रंज-ए-असीरी क्या
चमन पर मिट गया जो हर तरह आज़ाद होता है
असग़र गोंडवी
ग़ज़ल
शब हमा शब खेलते थे हल्क़ा-हा-ए-ज़ुल्फ़ से
दीदा-ए-ग़म्माज़ को हम दास्ताँ रखते थे हम
मुज़फ़्फ़र शिकोह
नज़्म
सती
आलम-ए-दूद-ए-सियह वो ज़ुल्फ़-ए-अम्बर-फ़ाम में
दौड़ने वाले वो शोले हल्क़ा-हा-ए-दाम में