aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "हस्ब-ए-मामूल"
हस्ब-ए-मामूलइस बार भी तुम
फेर जो पड़ना था क़िस्मत में वो हस्ब-ए-मामूल पड़ाख़ंदा-ए-गुल से उड़ा वो शरारा ख़िर्मन-ए-दिल पर फूल पड़ा
हस्ब-ए-मामूल आए हैं शाख़ों में फूल अब के बरससाया-अफ़गन हैं मगर उन पर बबूल अब के बरस
हस्ब-ए-मामूल मौत आएगीहस्ब-ए-मामूल हम को जाना है
हस्ब-ए-मामूल हैमिरा नाम शेनान्डोरा है
हस्ब-ए-मामूलحسب معمول
as usual
"जान क्यों खाए जाती हो कहता भी हूँ कि लेता आऊँगा ज़रूर लेता आऊँगा ज़रूर बालज़रोर और कचहरी से सीधा बाज़ार जाऊँगा इतमीनान रखू।"बावजूद इस क़दर इतमीनान दिलाने के भी ख़ानम मुझे कमरे के दरवाज़े तक हसब-ए-मामूल रुख़स्त करने जो आएं तो चलते चलते फिर ताकीद कर दी।
वो हस्ब-ए-मामूलमेरे मुक़ाबिल ही रहता है
कर्ब है सोज़ है गिरानी हैहस्ब-ए-मा'मूल ज़िंदगानी है
कल की शब भी मेरीहस्ब-ए-मामूल फिर राएगाँ ही गई
हस्ब-ए-मामूल बे-रुख़ी उस कीहस्ब-ए-आदत मिरी सदाएँ हैं
तुझ से कर के वफ़ा की उम्मीदेंहस्ब-ए-मामूल दिल दुखाना है
नया साल आयाकोई भी न तोहफ़ा हमारे लिए हस्ब-ए-मामूल लाया
मीमम नून अरशद: अब जनाब विक्रमा जीत साहिब वर्मा से इस्तदुआ की जाती है कि अपना कलाम सुनाएँ।विक्रमा जीत वर्मा: मैंने हस्ब-ए-मामूल कुछ गीत लिखे हैं।
वक़्फ़े वक़्फ़े से कभी दोनों में चश्मक होतीहस्ब-ए-मामूल सँभाले हुए ख़ाना-दारी
ख़्वाब-ए-राहत में खो गए हैं लोगहस्ब-ए-मामूल सो गए हैं लोग
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