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नज़्म
जौन-एलिया से आख़री मुलाक़ात
सुना है हम ने कि आप पर भी बहुत से फ़तवे लगे हैं लेकिन
शराब-नोशी हराम है तो
तारिक़ क़मर
ग़ज़ल
नए मंसूर हैं सदियों पुराने शेख़-ओ-क़ाज़ी हैं
न फ़तवे कुफ़्र के बदले न उज़्र-ए-दार ही बदला
फ़िराक़ गोरखपुरी
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शेर
लगाता फिर रहा हूँ आशिक़ों पर कुफ़्र के फ़तवे
'ज़फ़र' वाइज़ हूँ मैं और ख़िदमत-ए-इस्लाम करता हूँ
ज़फ़र इक़बाल
ग़ज़ल
जो मौलवी हैं वो लिक्खेंगे कुफ़्र के फ़तवे
सुनाऊँ सूरत-ए-मंसूर अगर तराना-ए-इश्क़