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ग़ज़ल
हम न देखेंगे तो ये मंज़र बदल जाएँगे क्या
देखना ठहरा तो क्या नफ़-ओ-ज़रर आँखों का है
इरफ़ान सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
वो निगह अपने लिए है सद-हिसाब-ए-आरज़ू
और मुझे बेगाना-ए-नफ़-ओ-ज़रर करती हुई
राजेन्द्र मनचंदा बानी
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ग़ज़ल
न पूछूँगा मैं ये भी जाम में है ज़हर या अमृत
तुम्हारे हाथ से अंदेशा-ए-नफ़-ओ-ज़रर क्या हो
नज़्म तबातबाई
ग़ज़ल
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
ग़ज़ल
कहती ही तिरी नाफ़-ओ-शिकम देख के बुलबुल
रुख़्सार-ए-गुल-ए-तर पे है नर्गिस की धरी आँख
ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर
नज़्म
बुक़रात बहुत खाता था
नोश-ओ-ख़ुर्दन है नविश्ता तिरे दीवाने का
जब हुई ख़ुश्क तो महबूब की काकुल ने कहा
मोहम्मद यूसुफ़ पापा
ग़ज़ल
समझ के इश्क़ कर ऐ दिल कि क्या नहीं मालूम
जो सोचते नहीं नफ़-ओ-ज़रर ज़रर में रहे