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नज़्म
नशात-ए-उमीद
वा'दा तिरा रास्त हो या हो दरोग़
तू ने दिए हैं उसे क्या क्या फ़रोग़
अल्ताफ़ हुसैन हाली
नज़्म
शीशा का आदमी
ज़बाँ से कलमा-ए-हक़-रास्त कुछ कहा जाता
ज़मीर जागता और अपना इम्तिहाँ होता