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नज़्म
वालिदा मरहूमा की याद में
तुख़्म जिस का तू हमारी किश्त-ए-जाँ में बो गई
शिरकत-ए-ग़म से वो उल्फ़त और मोहकम हो गई
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
दिखाऊँगा तमाशा दी अगर फ़ुर्सत ज़माने ने
मिरा हर दाग़-ए-दिल इक तुख़्म है सर्व-ए-चराग़ाँ का
मिर्ज़ा ग़ालिब
नज़्म
तुम याद मुझे आ जाते हो
और अपनी महक से हर दिल में इक तुख़्म-ए-लताफ़त बोती हैं
तुम याद मुझे आ जाते हो
बहज़ाद लखनवी
ग़ज़ल
दहक़ाँ की तरह दाना ज़मीन में न बो अबस
बौना वही जो तुख़्म-ए-अमल दिल में बोइए
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
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ग़ज़ल
असर सोज़-ए-मोहब्बत का क़यामत बे-मुहाबा है
कि रग से सँग में तुख़्म-ए-शरर का रेशा पैदा है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
पनावे बे-गुदाज़-ए-मोम रब्त-ए-पैकर-आराई
निकाले क्या निहाल-ए-शम्अ बे-तुख़्म-ए-शरार आतिश
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
नतीजा क्यूँकर अच्छा हो न हो जब तक अमल अच्छा
नहीं बोया है तुख़्म अच्छा तो कब पाओगे फल अच्छा
इस्माइल मेरठी
ग़ज़ल
'वज़ीर' तुख़्म-ए-मोहब्बत को दिल में बो अपने
ज़मीं वो शोर है जिस में उगे न दाना-ए-इश्क़
ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर
ग़ज़ल
वो तुख़्म-ए-सोख़्ता थे हम कि सर-सब्ज़ी न की हासिल
मिलाया ख़ाक में दाना नमत हसरत से दहक़ाँ को
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
फ़िक्र लाहक़ है हमेशा मिस्ल-ए-तुख़्म-ए-ना-तवाँ
हश्र क्या होगा दरून-ए-आब-ओ-गिल जाने के बाद
इफ़्तिख़ार राग़िब
ग़ज़ल
इश्क़ को नश्व-ओ-नुमा मंज़ूर है कब वर्ना सब्ज़
तुख़्म-ए-अश्क-ए-शम्अ हो ख़ाकिस्तर-ए-परवाना में