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ग़ज़ल
मरने वालो आओ अब गर्दन कटाओ शौक़ से
ये ग़नीमत वक़्त है ख़ंजर कफ़-ए-क़ातिल में है
बिस्मिल अज़ीमाबादी
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नज़्म
फ़रमान-ए-ख़ुदा
उठ्ठो मिरी दुनिया के ग़रीबों को जगा दो
काख़-ए-उमरा के दर ओ दीवार हिला दो
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ख़ून फिर ख़ून है
ख़ाक-ए-सहरा पे जमे या कफ़-ए-क़ातिल पे जमे
फ़र्क़-ए-इंसाफ़ पे या पा-ए-सलासिल पे जमे
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
बहादुर शाह ज़फ़र
नज़्म
मस्जिद-ए-क़ुर्तुबा
अर्श-ए-मोअल्ला से कम सीना-ए-आदम नहीं
गरचे कफ़-ए-ख़ाक की हद है सिपहर-ए-कबूद
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
सादगी पर उस की मर जाने की हसरत दिल में है
बस नहीं चलता कि फिर ख़ंजर कफ़-ए-क़ातिल में है