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ग़ज़ल
लबों पर तिश्नगी आँखों में है बरसात का आलम
कि तन्हा कैसे गुज़रेगा बता जज़्बात का आलम
असलम नूर असलम
ग़ज़ल
मैं ने यूँ इन सर्द लबों को रक्खा उन रुख़्सारों पर
जैसे कोई भूल से रख दे फूलों को अंगारों पर