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नज़्म
माज़ूरी
ख़ल्वत-ओ-जल्वत में तुम मुझ से मिली हो बार-हा
तुम ने क्या देखा नहीं मैं मुस्कुरा सकता नहीं
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
लुत्फ़-ए-ख़ल्वत-ओ-जल्वत हम न पा सके लेकिन
धूम हर तरफ़ उन की ज़िक्र जा-ब-जा मेरा
अली मंज़ूर हैदराबादी
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नज़्म
अहमद-'फ़राज़' मरहूम की नज़्र
वो मर्द-ए-ख़ल्वत-ओ-जल्वत वो मर्द-ए-लौह-ओ-क़लम
वो मर्द-ए-नेक-'अमल आह मर्द-ए-नेक-बयाँ
शादाब रज़ी
नज़्म
नुक़ूश-ए-फ़िक्र-ओ-‘अमल
हर ख़ल्वत-ओ-जल्वत में जो कहते रहे दाइम
वो बरसर-ए-मिम्बर भी बयाँ हम ने किया है
इनाम थानवी
ग़ज़ल
किस का चमकता चेहरा लाएँ किस सूरज से माँगें धूप
घोर अँधेरा छा जाता है ख़ल्वत-ए-दिल में शाम हुए
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
मज़ा क्या उस बुत-ए-बे-पीर से दिल के लगाने का
जो ख़ल्वत में हो बुत महफ़िल में हो तस्वीर की सूरत