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नज़्म
जहाँ 'रेहाना' रहती थी
ये वो ख़ित्ता था जिस में नौ-बहारों की ख़ुदाई थी
वो इस ख़ित्ते में मिस्ल-ए-सब्ज़ा-ए-बेगाना रहती थी
अख़्तर शीरानी
नज़्म
मुस्लिम उम्मा का अमरीका से शिकवा
हम मुसलमान हैं दहशत के रवादार नहीं
किसी ख़ित्ते के भी इंसान से बेज़ार नहीं
खालिद इरफ़ान
ग़ज़ल
देखिए क्या क्या सितम मौसम की मन-मानी के हैं
कैसे कैसे ख़ुश्क ख़ित्ते मुंतज़िर पानी के हैं
राजेन्द्र मनचंदा बानी
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ग़ज़ल
शाहिद माकुली
नज़्म
कश्मीर
मैं हैराँ हूँ कि इस ख़ित्ते को क्यूँ कर सर-ज़मीं कहिए
सदाक़त का तक़ाज़ा है कि फ़िरदौस-ए-बरीं कहिए