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नज़्म
इस्लाम-आबाद की एक शाम
ये शाम पतझड़ की दाइमी तो नहीं है 'नाज़िश'
बहार की सुब्ह आने वाली है ग़म न करना
नसीम नाज़िश
ग़ज़ल
हमारा नाम भी बारा-दरी पर नक़्श करना
ये सारी जालियाँ हम ने निगाहों से बुनी हैं
मोहम्मद इज़हारुल हक़
ग़ज़ल
कारवान-ए-दह्र को मंज़िल-ब-मंज़िल देख आए
'नाज़िश'-ए-बदनाम अपनी सुब्ह क्या और शाम क्या
नाज़िश सह्सहरामी
ग़ज़ल
कुछ वही समझेगा 'नाज़िश' आज के माहौल को
जिस को ज़िंदाँ पर यक़ीन-ए-गुल्सिताँ करना पड़े
नाज़िश प्रतापगढ़ी
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ग़ज़ल
ख़िल्क़त-ए-कौनैन में क्या जिन ओ क्या इंसाँ 'नज़ीर'
वहशी ओ ताइर ज़बाँ ओ बे-ज़बाँ को इश्क़ है
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
बरसात का मौसम
कटता नहीं परदेस में बरसात का मौसम
ऐ नाज़िश-ए-कौनैन सितम-केश-ओ-सितम-गार
इज़हार मलीहाबादी
ग़ज़ल
मैं तुझ पर मुन्कशिफ़ हो जाऊँ ये मुझ पर गराँ है
ख़सारा सा ख़सारा ता-ब-इम्काँ सब ज़ियाँ है