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नज़्म
मोम पिघलाता रहा तेरा ख़याल
क्या सुलगती रात है मेरे नदीम
आतिशीं शोरिश-ज़दा तेरे ख़याल
रुख़साना नूर
ग़ज़ल
दिलों में जब गुमाँ होंगे मकीं आहिस्ता आहिस्ता
तो धुँदला जाएगा नूर-ए-यकीं आहिस्ता आहिस्ता
रुख़्साना निकहत लारी उम्म-ए-हानी
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ग़ज़ल
रो चले चश्म से गिर्या की रियाज़त कर के
आँखें बे-नूर हैं यूसुफ़ की ज़ियारत कर के
अली अकबर नातिक़
नज़्म
क़ैद-ए-तन्हाई
दूर आफ़ाक़ पे लहराई कोई नूर की लहर
ख़्वाब ही ख़्वाब में बेदार हुआ दर्द का शहर