aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "aa.iina-gar"
ईनाम किताब घर
पर्काशक
अनार कली किताब घर, लाहौर
अदा-ए-हैरत-ए-आईना-गर भी रखते हैंहमें न छेड़ कि अब तक नज़र भी रखते हैं
ہستی اور نیستی کے سارے اسرار چھوٹے چھوٹے لمحوں کی کوکھ سے پھوٹتے ہیں لمحے جوکہ آتے رہتے ہیں مگر کم کم آتے ہیں کہ جن کے بطن سے حقیقی خوشیوں اور لذتوں کے سرچشموں کو جنم لینا ہوتا ہے۔ چاول پلیٹ میں ڈال دو؛سکرین سے نظریں ہٹائے بغیر انہوں...
हर एक ख़लिया को आईना घर बनाते हुएबहुत बटा हूँ बदन मो'तबर बनाते हुए
मुँह जो देखे आईना गर काँच कामुस्कुरा उठ्ठे मुक़द्दर काँच का
आइना भी आईना-गर से उलझता रह गयामैं ही उस बहरूप घर में एक झूटा रह गया
आधुनिक उर्दू नज़्म के संस्थापकों में शामिल। अग्रणी फ़िल्म-संवाद लेखक। फ़िल्म ' वक़्त ' और ' क़ानून ' के संवादों के लिए मशहूर।
क़ाफ़िया रदीफ़ ग़ज़ल के बुनियादी रुक्न हैं। लेकिन ग़ज़ल रदीफ़ के बग़ैर भी कही जाती है। ऐसी ग़ज़लों को ग़ैर-मुरद्दफ़ ग़ज़ल कहा जाता है। यहाँ आप ऐसी ही चुनिंदा ग़ज़लें जमा की गई हैं। पढ़िए और लुत्फ़-अन्दोज़ होइए।
घर के मज़मून की ज़्यादा-तर सूरतें नई ज़िंदगी के अज़ाब की पैदा की हुई हैं। बहुत सी मजबूरियों के तहत एक बड़ी मख़लूक़ के हिस्से में बे-घरी आई। इस शायरी में आप देखेंगे कि घर होते हुए बे-घरी का दुख किस तरह अंदर से ज़ख़्मी किए जा रहा है और रूह का आज़ार बन गया है। एक हस्सास शख़्स भरे परे घर में कैसे तन्हाई का शिकार होता है, ये हम सब का इज्तिमाई दुख है इस लिए इस शायरी में जगह जगह ख़ुद अपनी ही तस्वीरें नज़र आती हैं।
आइना-गरآئنہ گر
आईनः (आईना, शीशा) बनाने वाला, दर्पणकार
आईना-गरآئِینَہ گَر
दर्पणकार, आईना बनाने वाला
Elis Aina Ghar Mein
लुईस कैरोल
Meer Hasan Aur Unka Ghair Matbua Kalam
मीर हसन
संकलन
Aarsi Yaani Ghar Daari Ka Aaina
मौलवी मुहम्मद अमीन
Khushi Nama, Gham Nama, Faqeeri Nama - Aaina Nama
Aima-e-Talbees Ya Gaar-e-Tigran-e-Imaan
अबुलक़ासिम रफ़ीक़ दिलावरी
Mohammad S.A.W.Aagosh-e-Aamna Se Gar-e-Hara Tak
अली असग़र चौधरी
इस्लामियात
Gard Mein Ate Aaine
पी पी श्रीवास्तव रिंद
Ghar Aane Ko Hai
नुसरत मेहदी
ग़ज़ल
Sitam Gar
दीबा ख़ानम
नीतिपरक
School Se Ghar Tak
मोहम्मद इफ़्तिख़ार खोखर
शिक्षाप्रद
Qulzum-e-Gham
इफ़्फ़त मोहानी
Tarab Gah-e-Raqeeb
कलीम उर्फ़ी
Safeena-e-Gham-e-Dil
क़ुर्रतुलऐन हैदर
Kasrat Mein Wahdat
ओ. पी. घई
तुलनात्मक अध्ययन
A History of Persian Language And Literature At The MuA History of Persian Language And Literature At The Mughal Court ghal Court
अबुल ग़नी
साहित्य का इतिहास
ये बात जान नहीं पाया आइना-गर क्यान हो कोई पस-ए-मंज़र तो फिर है मंज़र क्या
अर्ज़ किया, कुछ भी हो, मैं घर में मुर्ग़ियां पालने का रवादार नहीं। मेरा रासिख़ अक़ीदा है कि उनका सही मुक़ाम पेट और प्लेट है और शायद।” “इस रासिख़ अक़ीदे में मेरी तरफ़ से पतीली का और इज़ाफ़ा कर लीजिए।” उन्होंने बात काटी।...
तेशा-ब-कफ़ को आइना-गर कह दिया गयाजो ऐब था उसे भी हुनर कह दिया गया
मस्नूअ को सानेअ' से जुदा कर नहीं सकताआईने में अक्स-ए-हुनर-ए-आइना-गर है
कितना आसान समझते हैं लोगसोहबत-ए-आइना-गर में रहना
चेहरगी के तमाम-तर चेहरेदस्त-ए-आईना-गर में रहते हैं
पेशानी-ए-आईना पे हो ज़ाहिरजो ज़ख़्म दिल-ए-आईना-गर में है
गिरफ़्तार है सेहर-ए-आईना-गर कापस-ए-आईना किस तरह यार उतरे
कह दियातासीर-ए-कुल आईना-गर
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