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ग़ज़ल
जो नंग-ए-इश्क़ हैं वो बुल-हवस फ़रियाद करते हैं
लब-ए-ज़ख़्म-ए-'हवस' से कब सदा-ए-ज़ींहार आई
मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस
ग़ज़ल
जोड़ना उन का निहायत ऐ 'हवस' दुश्वार था
दिल के टुकड़े देख मेरे शीशागर ने क्या कहा
मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस
ग़ज़ल
इस में ज़ियाँ है जान का सुनता है ऐ 'हवस'
ज़िन्हार बार-ए-इश्क़ न सर पर उठाइयो
मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस
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ग़ज़ल
जाता हूँ जब उस के पास कहता है वो ऐ 'हवस'
आगे तू मेरे न आ सामने से टल कहीं
मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस
ग़ज़ल
ख़ंदा-ज़नाँ हैं तुझ पे गो ये ख़िरदान-ए-रोज़गार
अहल-ए-ख़िरद में ऐ 'हवस' रौनक़-ए-अंजुमन हूँ में
मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस
ग़ज़ल
आश्ना कोई नज़र आता नहीं याँ ऐ 'हवस'
किस को मैं अपना अनीस-ए-कुंज-ए-तन्हाई करूँ
मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस
शेर
आश्ना कोई नज़र आता नहीं याँ ऐ 'हवस'
किस को मैं अपना अनीस-ए-कुंज-ए-तन्हाई करूँ
मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस
ग़ज़ल
मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस
ग़ज़ल
गिरह साँसों में डाली है 'हवस' इफ़रात-ए-गिर्या ने
न आह-ए-ना-तवाँ आने को लब तक नर्दबाँ ढूँढे
मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस
ग़ज़ल
मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस
ग़ज़ल
शिकवा उस बुत के जफ़ा का जो किया मैं तो कहा
तुम तो दुनिया में हो इक अहल-ए-वफ़ा तुम को क्या
मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस
ग़ज़ल
दुख पहुँचे जो कुछ तुम को तुम्हारी ये सज़ा है
क्यूँ उस के 'हवस' आशिक़-ए-जाँ-बाज़ हुए तुम
मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस
ग़ज़ल
शायद मैं उसे देखूँ 'हवस' बा-लब-ए-ख़ंदाँ
जाता हूँ इस उम्मीद पे गिर्यां पस-ए-महमिल