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ग़ज़ल
जुनूँ के वलवले जब घुट गए दिल में निहाँ हो कर
तो उट्ठे हैं धुआँ हो कर गिरे हैं बिजलियाँ हो कर
नज़्म तबातबाई
नज़्म
गोरिस्तान-ए-शाही
आसमाँ बादल का पहने ख़िरक़ा-ए-देरीना है
कुछ मुकद्दर सा जबीन-ए-माह का आईना है