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ग़ज़ल
जिन में कुछ लुत्फ़ और अंदाज़-ए-करम भी कुछ हैं
तुम ही इंसाफ़ से कह दो सितम भी कुछ हैं
फ़ज़ल हुसैन साबिर
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शेर
पर्दा-ए-लुत्फ़ में ये ज़ुल्म-ओ-सितम क्या कहिए
हाए ज़ालिम तिरा अंदाज़-ए-करम क्या कहिए
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
हिर-फिर के सदा रेवड़ी अपनों ही को बाँटी
हम आप का अंदाज़-ए-करम देख रहे हैं
किशन लाल ख़न्दां देहलवी
ग़ज़ल
तब-ए-ख़ुद्दार पे इक तुर्फ़ा सितम है 'मोहसिन'
उन का अंदाज़-ए-करम ग़ैर के एहसाँ की तरह
मोहसिन भोपाली
ग़ज़ल
ये किस जान-ए-बहाराँ ने ब-अंदाज़-ए-करम देखा
मुक़द्दर खुल गए सहराओं के वीराने जाग उट्ठे