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ग़ज़ल
ब-जुज़ अंदोह-ओ-ग़म क्या और हिज्र-ए-यार में देखा
यही पाया यही हर कूचा-ओ-बाज़ार में देखा
हामिद हुसैन हामिद
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ग़ज़ल
अरे 'ग़म' लग़्ज़िश-ए-सोज़-ए-जिगर का कैफ़ क्या कहिए
ज़बाँ मजबूर हो जाती है जब दिल में उतरती है
ग़म बिजनौरी
ग़ज़ल
ज़िंदगी अंदोह-ए-ग़म में घुट के रह जाए अगर
जज़्बा-ए-ग़म आँसुओं की शक्ल बहना छोड़ दे
सलीम सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
चुपके चुपके ही भड़क उठेंगे जब अंदोह-ए-ग़म
चुपके चुपके आँच भी क़ल्ब-ए-तपाँ तक जाएगी
मनोहर लाल हादी
कुल्लियात
अंदोह-ओ-ग़म से अक्सर रहता हूँ मैं मुकद्दर
क्या ख़ाक में मिली है मेरी सफ़ाई-ए-दिल
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
ख़त में अंदोह-ए-गिराँबारि-ए-ग़म लिखता हूँ
तोड़ डाले न कहीं बाल-ए-कबूतर काग़ज़