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नज़्म
ख़िज़्र-ए-राह
तुर्क-ए-ख़र्गाही हो या आराबी-ए-वाला-गुहर
नस्ल अगर मुस्लिम की मज़हब पर मुक़द्दम हो गई
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
पूछा हमारा हाल-ए-दिल जिस ने 'इराक़ी' प्यार से
अपना कलाम एक बार पढ़ के सुना दिया कि यूँ
अब्बास इराक़ी
ग़ज़ल
मेरे मातम में उतारीं आ के मेरी क़ब्र पर
दे गई यूँ मुझ को वो अपनी निशानी चूड़ियाँ
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
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ग़ज़ल
अश्क तो इतने बहे 'चंदा' कि चश्म-ए-ख़ल्क़ से
क़ुर्रत-उल-ऐन-ए-अली के ग़म में बह जाती है नींद
मह लक़ा चंदा
ग़ज़ल
न काम आलम से है हम को न हूर-उल-ऐन-ए-जन्नत से
है इक मदहोश दाना-तर ब-दिल-होशियार से मतलब
मरदान सफ़ी
ग़ज़ल
बहुत आसाँ न समझो संग-दिल दिल मोम हो जाना
उतरती है निगाह-ए-अव्वलीं आहिस्ता आहिस्ता