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ग़ज़ल
कोई नाज़ुक-बदन मिलता है जब अज़-राह-ए-बेगाना
तबीअत भीग जाती है तो उन की याद आती है
अशहद बिलाल इब्न-ए-चमन
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ग़ज़ल
मुहम्मद तौसीफ़
नज़्म
हिसार-ए-तीरगी
तुझ को बख़्शी थी किरन अज़-राह-ए-दिल-सोज़ी मगर
तू समझता है कि ये जूद-ओ-सख़ा लुत्फ़-ओ-अतफ़