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ग़ज़ल
गाह क़रीब-ए-शाह-रग गाह बईद-ए-वहम-ओ-ख़्वाब
उस की रफ़ाक़तों में रात हिज्र भी था विसाल भी
परवीन शाकिर
ग़ज़ल
तू ने हम से कलाम भी छोड़ा अर्ज़-ए-वफ़ा के सुनते ही
पहले कौन क़रीब था हम से अब तो और बईद हुआ
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
वो मेरा वहम-ए-नज़र था कि तेरा अक्स-ए-जमील
वो कौन था कि जो मंज़र के दरमियाँ गुज़रा
सय्यदा शान-ए-मेराज
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ग़ज़ल
बई'द-ए-अख़्लाक़-ओ-आदमिय्यत है रहनुमाओं से बद-गुमानी
कमाल-ए-सादा-दिली तो ये है कि साथ दे राहज़न हमारा
शाद आरफ़ी
ग़ज़ल
नियाज़ गुलबर्गवी
ग़ज़ल
नक़्श-ए-तिलिस्म-ए-वहम है दुनिया कहें जिसे
नैरंगी-ए-नज़र है तमाशा कहें जिसे