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नज़्म
दीवार-ए-काबा 19 नवम्बर 1989
तू मुझे गोद में ले के यारों अज़ीज़ों में बाज़ार-ओ-दफ़्तर को जाता
मुझे याद है ये
बिलाल अहमद
नज़्म
लब पर नाम किसी का भी हो
आज तो हम बिकने को आए, आज हमारे दाम लगा
यूसुफ़ तो बाज़ार-ए-वफ़ा में, एक टिके को बिकता है
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
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ग़ज़ल
'क़ुदसी' तो अकेला नहीं मैदान-ए-सुख़न में
हर कूचा-ओ-बाज़ार में फ़न-कार बहुत हैं