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ग़ज़ल
किसी बदमस्त को राज़-आश्ना सब का समझते हैं
निगाह-ए-यार तुझ को क्या बताएँ क्या समझते हैं
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
जिसे देखो वही बदमस्त ही मग़रूर है हमदम
कोई बंदा नहीं दुनिया में किस किस को ख़ुदा समझो
अख़्तर अंसारी अकबराबादी
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नज़्म
होली की बहारें
बद-मसत बड़ी मतवाली हो हर आन बजाती ताली हो
मय-नोशी हो बेहोशी हो ''भड़वे'' की मुँह में गाली हो
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
उस चश्म में है सुरमे का दुम्बाला पुर-आशोब
क्यूँ हाथ में बदमस्त के बंदूक़ भरी दी
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
कोई बदमस्त को देता है साक़ी भर के पैमाना
तिरा क्या जाएगा मुझ पर अबस इल्ज़ाम आएगा
शाद अज़ीमाबादी
नज़्म
सरमाया-दारी
मगर बद-मस्त है हर हर क़दम पर लड़खड़ाती है
मुबारक दोस्तो लबरेज़ है अब इस का पैमाना
असरार-उल-हक़ मजाज़
ग़ज़ल
बस-कि हैं बद-मस्त-ए-ब-शिकन ब-शिकन-ए-मय-ख़ाना हम
मू-ए-शीशा को समझते हैं ख़त-ए-पैमाना हम
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
तेरी जफ़ा न हो तो है सब दुश्मनों से अम्न
बदमस्त ग़ैर महव दिल और बख़्त ख़्वाब में