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ग़ज़ल
न क्यूँ बहर-ए-शहादत सर झुकाएँ शौक़ से 'आशिक़
बसान-ए-तेग़ कहिए अबरू-ए-ख़मदार किस के हैं
जमीला ख़ुदा बख़्श
ग़ज़ल
जुम्बिश-ए-तेग़-ए-निगह की नहीं हाजत असलन
काम मेरा वो इशारों ही में कर जाते हैं
कल्ब-ए-हुसैन नादिर
ग़ज़ल
दस्त-ए-क़ातिल में कोई तेग़ न ख़ंजर होता
मिरा साया जो मिरे क़द के बराबर होता
बद्र-ए-आलम ख़ाँ आज़मी
ग़ज़ल
कभी वो देखते हैं अपने तेग़ ओ बाज़ू को
कभी वो ग़ैज़ से मुझ पर निगाह करते हैं
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
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ग़ज़ल
क्या पान की सुर्ख़ी ने किया क़त्ल किसी को
शिद्दत से है क्यूँ आज तिरी तेग़-ए-ज़बाँ सुर्ख़
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
मुझ से न पूछ अपनी ही तेग़-ए-अदा से पूछ
क्यूँ तेरी चश्म-ए-लुत्फ़ भी मरहम न हो सकी
आल-ए-अहमद सुरूर
ग़ज़ल
बसान-ए-नक़्श-ए-पा-ए-रह-रवाँ कू-ए-तमन्ना में
नहीं उठने की ताक़त क्या करें लाचार बैठे हैं
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
बसान-ए-ख़ाना-ब-दोशाँ कई है उम्र अपनी
जहाँ क़याम किया घर बना दिया हम ने
सय्यद नवाब हैदर नक़वी राही
ग़ज़ल
सरगिरानी है अबस हम ख़ाकसारों से तुम्हें
या तो मिटने को बसान-नक़श-ए-पा बैठे हैं हम