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ग़ज़ल
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
बे-अमल लोगों से जब पूछो तो कहते हैं की 'शान'
हम अज़ल से क़िस्मत-ए-नाकाम ले कर आए हैं
सय्यदा शान-ए-मेराज
ग़ज़ल
कफ़्फ़ारा-ए-शराब मैं देता हूँ नक़्द-ए-होश
सरगर्म हूँ तलाफ़ी-ए-आमाल-ए-ज़िश्त में
मुनीर शिकोहाबादी
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ग़ज़ल
मुनाफ़े'-ख़ोर दो दिन के लिए भी कर नहीं सकते
सिले में जिस अमल के नक़्द-ए-माल-ओ-ज़र नहीं मिलता
मुख़्तारुद्दीन
ग़ज़ल
जो न नक़्द-ए-दाग़-ए-दिल की करे शोला पासबानी
तो फ़सुर्दगी निहाँ है ब-कमीन-ए-बे-ज़बानी
मिर्ज़ा ग़ालिब
नज़्म
बी अम्माँ से ख़िताब
तू ने रम्ज़-ए-क़ल्ब-ए-मख़्फ़ी आश्कारा कर दिए
मा'नी-ए-इल्म-ओ-अमल पर्दा से बे-पर्दा किए
बिलक़ीस जमाल बरेलवी
ग़ज़ल
जज़्बा-ए-जेहद-ओ-अमल से ज़िंदगी कोह-ए-गिराँ
बे-अमल हो ज़िंदगी तो रेत की दीवार है
सय्यद मेराज जामी
नज़्म
'वली'
रूह में जिस ने भरी उर्दू के बे-जाँ जाम में
कैफ़-ए-एहसास-ए-अमल है जिस के हर पैग़ाम में
मयकश अकबराबादी
नज़्म
पयाम-ए-आज़ादी
उठ और हाथ में ले तेग़-ए-बे-नियाम-ए-अमल
कि है वसीला-ए-फ़ौज़-ओ-मराम-ए-आज़ादी