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ग़ज़ल
मौसम-ए-गुल में वो उड़ते हुए भौँरों की तरह
ग़ुंचा-ए-दिल पे वो करती हुई यलग़ार आँखें
अली सरदार जाफ़री
नज़्म
ऐ मिरे सोच-नगर की रानी
सेहन-ए-चमन पर भौउँरों के बादल एक ही पल को छाएँगे
फिर न वो जा कर लौट सकेंगे फिर न वो जा कर आएँगे
इब्न-ए-इंशा
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हास्य
भौँरों को गुलिस्ताँ में कलियों ने हैं दी डेटें
क्या मेरी तरफ़ ये दिल अट्रैक्ट नहीं होगा
राजा मेहदी अली ख़ाँ
ग़ज़ल
फूलों में न पहली सी वो ख़ुशबू है न वो रंग
भौँरों को गिरफ़्तार-ए-मेहन देख रहा हूँ