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दोहा
बुर्क़ा-पोश पठानी जिस की लाज में सौ सौ रूप
खुल के न देखी फिर भी देखी हम ने छाँव में धूप
जमीलुद्दीन आली
नज़्म
तशन्नुज
मुस्कुराहट: इक लिपस्टिक ख़ंदा-पेशानी नक़ाब
रूह: बुर्क़ा-पोश: आँखें बे-हिजाब!
अमीक़ हनफ़ी
ग़ज़ल
अल्लाह-रे बुर्क़ा तिरा और उस के ये रौज़न
देखे जो छुपा यूँ तुझे रू-पोश में मर जाए
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
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ग़ज़ल
है यही सूरत तो हम से राज़-पोशी हो चुकी
चश्म तर लब ख़ुश्क चेहरा ज़र्द ये नक़्शा बुरा
इमदाद अली बहर
ग़ज़ल
चराग़-ए-तनफ़्फ़ुस बुझा चाहता है
ख़ुदा जाने अब क्या ख़ुदा चाहता है
अज़ीमुद्दीन साहिल साहिल कलमनूरी
ग़ज़ल
क्या फ़ाएदा नाहक़ सितम इतना न करो तुम
हक़ से तो डरो गर मिरी पर्वा न करो तुम