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कुल्लियात
डूबा ख़याल-ए-चाह-ए-ज़नख़दाँ में उस के 'मीर'
दानिस्ता क्यों कुएँ में भला ये जवाँ गिरा
मीर तक़ी मीर
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ग़ज़ल
दिल में है जल्वा-कुनाँ चाह-ए-ज़नख़दाँ का ख़याल
ऐन का'बे में नज़र चश्मा-ए-ज़मज़म आया
असद अली ख़ान क़लक़
ग़ज़ल
बा'द उस के जो अगर समझे मुनासिब ऐ दिल
क़ैद होने के तईं चाह-ए-ज़नख़दान में आ
क़ासिम अली ख़ान अफ़रीदी
ग़ज़ल
कहते हैं उसे चाह-ए-ज़नख़दाँ ग़लती से
बोसे का निशाँ है ये तिरे सेब-ए-ज़क़न में
मुनव्वर ख़ान ग़ाफ़िल
ग़ज़ल
चाह में मुझ को ये मुर्शिद का है इरशाद 'नज़ीर'
आबरू चाहे तो मत चाह-ए-ज़नख़दाँ से निकल
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
क्या हादिसा पड़ा मिरे यूसुफ़ पर ऐ 'सबा'
दिल गिर के उन की चाह-ए-ज़नख़दाँ में रह गया
वज़ीर अली सबा लखनवी
ग़ज़ल
डूब कर मरने का शौक़ उस से ही पूछ ऐ क़ातिल
जिस ने देखा ये तिरा चाह-ए-ज़नख़दाँ होगा
आग़ा अकबराबादी
ग़ज़ल
रुल गया चाह-ए-ज़नख़दाँ के तिलिस्मात में दिल
ग़म-ए-दौराँ से तो बीका न हुआ बाल मिरा
सरफ़राज़ ख़ान आज़मी
ग़ज़ल
क्यूँ तिरे चाह-ए-ज़नख़दाँ का न नज़्ज़ारा करें
जी से भाता है बहुत सब्ज़ा-ए-चाही हम को
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
रुलाता है मुझे हर-दम तसव्वुर रू-ए-जानाँ का
भरा है पानी आँखों में यहाँ चाह-ए-ज़नख़दाँ का
इमदाद अली बहर
ग़ज़ल
मुझे है आरज़ू दिल में तिरी चाह-ए-ज़नख़दाँ की
नहीं दरकार हौज़-ए-कौसर ओ आब-ए-ज़ुलाल उस का