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हिंदी ग़ज़ल
न शम्अ है न परवाने ये कैसा रंग-ए-महफ़िल है
कि मातम आ गया शहनाइयों तक तुम नहीं आए
बलबीर सिंह रंग
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ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
है सौ अदाओं से उर्यां फ़रेब-ए-रंग-ए-अना
बरहना होती है लेकिन हिजाब-ए-ख़्वाब के साथ
बद्र-ए-आलम ख़लिश
नज़्म
उजाले की लकीर
आसमानों को ज़मीनों को नए रंग मिले
और फ़ज़ा निकहत-ओ-रानाई से मा'मूर हुई