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ग़ज़ल
ऐ मिरे माह-रू तिरी चश्म-ए-सितारा-साँ के बाद
चाँद की दीद क्या करें रूयत-ए-कहकशाँ के बाद
साइमा ज़ैदी
ग़ज़ल
रातों को तुझ से जागना गर कोई पूछे 'मुसहफ़ी'
चश्म-ए-सितारा बाज़ हैं उस को फ़लक दिखा कि यूँ
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
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नज़्म
ये कौन आया
ख़्वाबों के गुलिस्ताँ की ख़ुश-बू-ए-दिल-आरा है
या सुब्ह-ए-तमन्ना के माथे का सितारा है
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
जहाँ होते किसी चश्म-ए-सितारा-याब में होते
हम ऐसे लोग हर लहज़ा हिसार-ए-आब में होते