aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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और अपनी भावज का हाथ थामेज़ुबैदा चैक-अप को जा रही है
चाक-ए-दामाँ न रहा चाक-ए-गरेबाँ न रहाफिर भी पोशीदा मिरा हाल-ए-परेशाँ न रहा
सीने हैं चाक और गरेबाँ सिले हुएतूफ़ाँ हैं सत्ह-ए-आब के नीचे छुपे हुए
“इस्मत चुग़्ताई! तुम लखनऊ से मेरे लिए दो चीज़ें लाना मत भूलना। एक तो कुरते दूसरे मजाज़।” इस्मत लखनऊ में मजाज़ से मिलीं तो शाहिद लतीफ़ की फ़रमाइश दोहरा दी।...
मिरा चाक-ए-गिरेबाँ चाक-ए-दिल से मिलने वाला हैमगर ये हादसे भी बेश ओ कम होते ही रहते हैं
शायरी में महबूब के जिस्मानी आज़ा के बयान वाला हिस्सा बहुत दिल-चस्प और रूमान-पर्वर है। यहाँ आप महबूब के रुख़्सार का बयान पढ़ कर ख़ुद अपने बदन में एक झुरझुरी सी महसूस करने लगेंगे। हम यहाँ नई पुरानी शायरी से रुख़्सार को मौज़ू बनाने वाले कुछ अच्छे शेरों का इन्तिख़ाब आप के लिए पेश कर रहे हैं।
A collection of interesting questions related to Urdu poetry, prose and literary history. Play Rekhta Quiz and check your knowledge about Urdu!
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आयतुल्लाह दुक्तर बिहिश्ती
पस चा बायद कर्द मा मुसाफ़िर
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मोहम्मद अब्दुल बाक़ी
Sharh-e-Masnawi Pas Che Bayad Kard Ma Musafir
ख़्वाजा हमीद यज़दानी
व्याख्या
Sada-e-Dil Sad-Chak
सदा अम्बालवी
Ek Kahani Chehh Adeebon Ki Zabani
चाक-ए-दिल भी कभी सिलते होंगेलोग बिछड़े हुए मिलते होंगे
देखे कोई जो चाक-ए-गरेबाँ के पार भीआईना-ए-ख़िज़ाँ में है अक्स-ए-बहार भी
तेरा दीवाना लिए चाक-ए-गरेबाँ कब सेफिर रहा है तिरे कूचे में परेशाँ कब से
रस्ते से चाक-ए-दिल के हो आगाहयार तक फिर तो किस क़दर है राह
छेड़ ऐ दिल ये किसी शोख़ के रुख़्सारों सेखेलना आह दहकते हुए अँगारों से
मिरी आँखों में आँसू झूम आएन छेड़ ऐ दिल जवानी की कहानी
चाक-ए-दामान-ए-क़बा दाग़-ए-जुनूँ-साज़ बहुतहम ने पाए हैं दर-ए-यार से ए'ज़ाज़ बहुत
चाक-ए-दामाँ-ओ-गिरेबाँ पे हँसी आती हैकैसे इंसाँ हो कि इंसाँ पे हँसी आती है
ख़ुद तुम्हें चाक-ए-गरेबाँ का शुऊर आ जाएगातुम वहाँ तक आ तो जाओ हम जहाँ तक आ गए
आज करना थी तवज्जोह चाक-ए-दामाँ की तरफ़ध्यान जा निकला मगर इक रू-ए-ताबाँ की तरफ़
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