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ग़ज़ल
ख़त्म है शब चेहरा-ए-मशरिक़ से उठती है नक़ाब
दम-ज़दन में रौशनी ही रौशनी हो जाएगी
जगत मोहन लाल रवाँ
ग़ज़ल
जिस तरफ़ देखो हुजूम-ए-चेहरा-ए-बे-चेरगाँ
किस घने जंगल में यारो गुम हुआ सब का हुनर
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
तू ऐ दोस्त कहाँ ले आया चेहरा ये ख़ुर्शीद-मिसाल
सीने में आबाद करेंगे आँखों में तो समा न सके
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
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नज़्म
कातिक का चाँद
ये बड़ा चाँद चमकता हुआ चेहरा खोले
बैठा रहता है सर-ए-बाम-ए-शबिस्ताँ शब को
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
अभी ये ज़ख़्म-ए-मसर्रत है ना-शगुफ़्ता सा
छिड़क दो मेरे कुछ आँसू हँसी के चेहरे पर
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
चेहरा भी बर्क़ भी दिल लेने में गेसू भी बला
एक सा मोजज़ा है काफ़िर ओ दीं-दार के पास
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
नज़्म
चकले
कहाँ हैं कहाँ हैं मुहाफ़िज़ ख़ुदी के
सना-ख़्वान-ए-तक़्दीस-ए-मशरिक़ कहाँ हैं