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शेर
दास्तान-ए-शौक़-ए-दिल ऐसी नहीं थी मुख़्तसर
जी लगा कर तुम अगर सुनते मैं कहता और भी
मुंशी अमीरुल्लाह तस्लीम
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ग़ज़ल
राएगाँ होने न दो ऐ 'शौक़' तुम वक़्त-ए-अज़ीज़
ये वो शय है जो नहीं मिलती है खो जाने के बाद
शौक़ देहलवी मक्की
नज़्म
गोलकुंडा के साए में
नूर के परचम नज़र आते हैं लहराते हुए
झूम कर इक दास्तान-ए-शौक़ दोहराते हुए
ख़ुर्शीद अहमद जामी
ग़ज़ल
'आसी' ज़बान-ए-ख़ामुशी में दास्तान-ए-शौक़
हम ने कही है बारहा उस ने सुनी नहीं
पंडित विद्या रतन आसी
ग़ज़ल
'आसी' ज़बान-ए-ख़ामुशी में दास्तान-ए-शौक़
हम ने कही है बारहा उस ने सुनी नहीं
पंडित विद्या रतन आसी
ग़ज़ल
दास्तान-ए-शौक़ है अपने लहू से लाला-रंग
हर ज़माने में हमीं उन्वान-ए-अफ़्साना रहे