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ग़ज़ल
मैं चमन में क्या गया गोया दबिस्ताँ खुल गया
बुलबुलें सुन कर मिरे नाले ग़ज़ल-ख़्वाँ हो गईं
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
फ़ना तालीम-ए-दर्स-ए-बे-ख़ुदी हूँ उस ज़माने से
कि मजनूँ लाम अलिफ़ लिखता था दीवार-ए-दबिस्ताँ पर
मिर्ज़ा ग़ालिब
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ग़ज़ल
दीवाना हूँ मैं भी वो तमाशा कि मिरा ज़िक्र
गोया सबक़ अतफ़ाल-ए-दबिस्ताँ के लिए है
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
दबिस्तान-ए-वफ़ा में उम्र भर की सफ़्हा-गर्दानी
समझ में आई उल्फ़त की किताब आहिस्ता आहिस्ता
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
नज़्म
उर्दू-ए-मुअ'ल्ला
रोज़ अफ़्ज़ूँ हुस्न का हर दौर इक सय्यारा है
है दबिस्ताँ लखनऊ दिल्ली अगर गहवारा है
सफ़ी लखनवी
ग़ज़ल
रात गए जब तारे भी कुछ बे-मा'नी से लगते हैं
एक दबिस्ताँ खुलता है उन आँखों की तफ़सीरों का
अब्बास ताबिश
नज़्म
अब और तब
फ़ना तालीम दरस-ए-बे-ख़ुदी हूँ इस ज़माने से
कि मजनूँ लाम अलिफ़ लिखता था दीवार-ए-दबिस्ताँ पर
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
ग़ज़ल
मैं सिलसिला-दर-सिलसिला इक नामा-ए-रौशन
किस हर्फ़-ए-बशारत का दबिस्ताँ हूँ बताओ