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शायरी के अनुवाद
अकेला बैठा हुआ हूँ यहाँ चलती राह के किनारे
जो भोर के समय संगीत की नाव को खे कर दिलों के घाट पर ले आए
रबीन्द्र नाथ टैगोर
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नज़्म
मर्सिया-ए-टैगोर
टैगोर जिन गुलों में है अब शुमार तेरा
मुद्दत से उन गुलों को था इंतिज़ार तेरा
नारायण दास पूरी
शायरी के अनुवाद
सफ़्फ़ाक रात आती है चुपके चुपके
बे-सकत जिस्म की कमज़ोर बंदिशों को तोड़ती हुई