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ग़ज़ल
एक जल्वे की हवस वो दम-ए-रेहलत भी नहीं
कुछ मोहब्बत नहीं ज़ालिम तो मुरव्वत भी नहीं
आसी ग़ाज़ीपुरी
ग़ज़ल
दुहाई है ग़म-ए-मजबूरी-ए-इम्काँ दुहाई है
कि फिरती हैं दम-ए-रेहलत हमारी पुतलियाँ हम से
अफ़क़र मोहानी
नज़्म
लब पर नाम किसी का भी हो
आज तो हम बिकने को आए, आज हमारे दाम लगा
यूसुफ़ तो बाज़ार-ए-वफ़ा में, एक टिके को बिकता है
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
ब-ज़ाहिर उस के लबों पर हँसी रही लेकिन
दम-ए-विदाअ' वो दर-पर्दा बे-क़रार भी था
सय्यदा शान-ए-मेराज
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ग़ज़ल
वो तलव्वुन-ए-दम-ए-होश था कभी कुछ बने कभी कुछ बने
ये जुनून-ए-इश्क़ की शान है जो बना दिया सो बना दिया
आले रज़ा रज़ा
ग़ज़ल
बद्र-ए-आलम ख़लिश
नज़्म
गुलहा-ए-अक़ीदत
सुब्ह-दम बाद-ए-सबा की शोख़ियाँ काम आ गईं
लाला-ओ-गुल को बग़ल-गीरी का मौक़ा मिल गया
सय्यदा शान-ए-मेराज
ग़ज़ल
वक़्त के नादाँ परिंदे ज़ोम-ए-दानाई के गिर्द
ख़ूब-सूरत ख़्वाहिशों के दाम ले कर आए हैं