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ग़ज़ल
तू ऐ दोस्त कहाँ ले आया चेहरा ये ख़ुर्शीद-मिसाल
सीने में आबाद करेंगे आँखों में तो समा न सके
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
लब पर नाम किसी का भी हो
आज तो हम बिकने को आए, आज हमारे दाम लगा
यूसुफ़ तो बाज़ार-ए-वफ़ा में, एक टिके को बिकता है
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
ब-ज़ाहिर उस के लबों पर हँसी रही लेकिन
दम-ए-विदाअ' वो दर-पर्दा बे-क़रार भी था
सय्यदा शान-ए-मेराज
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ग़ज़ल
वो तलव्वुन-ए-दम-ए-होश था कभी कुछ बने कभी कुछ बने
ये जुनून-ए-इश्क़ की शान है जो बना दिया सो बना दिया
आले रज़ा रज़ा
नज़्म
गुलहा-ए-अक़ीदत
सुब्ह-दम बाद-ए-सबा की शोख़ियाँ काम आ गईं
लाला-ओ-गुल को बग़ल-गीरी का मौक़ा मिल गया
सय्यदा शान-ए-मेराज
ग़ज़ल
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
वक़्त के नादाँ परिंदे ज़ोम-ए-दानाई के गिर्द
ख़ूब-सूरत ख़्वाहिशों के दाम ले कर आए हैं
सय्यदा शान-ए-मेराज
शेर
उसी दिन से मुझे दोनों की बर्बादी का ख़तरा था
मुकम्मल हो चुके थे जिस घड़ी अर्ज़-ओ-समा बन कर
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
कभी आँधियों ने उड़ा दिया कभी बिजलियों ने जला दिया
किसी हाल में मिरा आशियाँ मुझे आह रास न आ सका