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नज़्म
आवारगी हवाओं की
हमारे शहर से हो कर किधर को जाती है
अभी तो देखिए दस्त-ए-ख़िज़ाँ की शब-कारी
साक़ी जावेद
ग़ज़ल
पारसाई शैख़-साहब की धरी रह जाएगी
दस्त-ए-साक़ी में अगर दम-भर भी साग़र रह गया
अनवरी जहाँ बेगम हिजाब
ग़ज़ल
दस्त-ए-साक़ी में झलकता साग़र-ए-गुलफ़ाम है
जाने क़िस्मत का सिकंदर कौन तिश्ना-काम है