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ग़ज़ल
पिला दे अपने हाथों से ज़रा इक जाम ऐ साक़ी
तिरे मय-कश दर-ओ-दीवार-ओ-दिरहम छोड़ आए हैं
ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर
ग़ज़ल
निगाह-ए-नाज़ की मस्ती से जो सरशार हैं साक़ी
वो दीवाने हक़ीक़त में बहुत हुशियार हैं साक़ी
साबिर अबुहरी
समस्त
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ग़ज़ल
उन को हों मुबारक मयख़ाने जो सिर्फ़ हैं मय के दीवाने
मुझ तक तो ख़याल-ए-साक़ी ही मस्ती ब-कनार आ जाता है
इशरत जहाँगीरपूरी
ग़ज़ल
अपने इस दौर में है रंज का सामान बहुत
आज इंसाँ है मसाइल से परेशान बहुत