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ग़ज़ल
भड़क उट्ठेंगे शो'ले एक दिन दुनिया की महफ़िल में
कहाँ तक जज़्ब होंगी बिजलियाँ सब्र-आज़मा दिल में
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
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ग़ज़ल
दीन दुनिया की मोहब्बत में अगर ग़ौर करो
है तनफ़्फ़ुर मुझे जिस तरह से कै से ऐसे
क़ासिम अली ख़ान अफ़रीदी
शेर
गुज़रती है मज़े से वाइ'ज़ों की ज़िंदगी अब तो
सहारा हो गया है दीन दुनिया-दार लोगों का
नातिक़ गुलावठी
ग़ज़ल
इश्क़ की कोई अगर सीख ले गर मुझ से तमीज़
दीन-दुनिया में हुआ अपने परायों को अज़ीज़
क़ासिम अली ख़ान अफ़रीदी
ग़ज़ल
तर्क-ए-दुनिया है 'शिफ़ा' अपना मक़ाम-ए-ज़िंदगी
चार दिन दुनिया हमें बहला गई अच्छा हुआ
प्रेम लाल शिफ़ा देहलवी
शेर
मातम में फ़ौत-ए-उम्र के रोता हूँ रात दिन
दुनिया में मुझ सा कम है कोई सोगवार शख़्स
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
नज़्म
ऐ अलीगढ़
माँ की ममता बाप की शफ़क़त तिरा आग़ोश है
दीन दुनिया का तिरे साए में किस को होश है