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ग़ज़ल
उस शख़्स की मुट्ठी में है सद-नौ-ए-करामात
'दीवाना' कि है ख़ंदा-जबीं अज़्ब-ए-बयाँ है
मोहन सिंह दीवाना
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ग़ज़ल
जाने तू क्या ढूँढ रहा है बस्ती में वीराने में
लैला तो ऐ क़ैस मिलेगी दिल के दौलत-ख़ाने में
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
वो दिल को देखता है न आमाल-ए-ज़ाहिरी
लैला के ख़्वास्त-गार को महमिल से क्या ग़रज़