आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "drama par ek daqeeq"
अत्यधिक संबंधित परिणाम "drama par ek daqeeq"
अन्य परिणाम "drama par ek daqeeq"
ग़ज़ल
दमा-दम शो'बदे हम को दिखाता है कोई जल्वा
कहीं शैख़-ए-हरम हो कर कहीं पीर-ए-मुग़ाँ हो कर
हरी चंद अख़्तर
नज़्म
रात
आँधियाँ आसमानों का नौहा ज़मीं को सुनाती हैं
अपनी गुलू-गीर आवाज़ में कह रही हैं,
सज्जाद बाक़र रिज़वी
ग़ज़ल
हमारी मौत पर भी गर डरामा चलते रहना है
तो इस किरदार से बाहर महूरत से निकलते हैं