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नज़्म
नूर-जहाँ
दुनिया-ए-तदब्बुर में थी यकता-ए-ज़माना
हाथ उस के थे और उन में हुकूमत की इनाँ थी
चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी
नज़्म
कातिक का चाँद
सोने लगती है सर-ए-शाम ये सारी दुनिया
इन के हुजरों में न दर है न दरीचा कोई
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
कितनी दिलकश है दिल-अफ़रोज़ है दुनिया-ए-दनी
अपनी आँखों से ज़रा हाथ हटा कर देखो
बद्र-ए-आलम ख़ाँ आज़मी
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ग़ज़ल
हम तो जब जानें कि काम आए मुसीबत में कोई
वर्ना यूँ कहने को दुनिया में हैं लाखों जाँ-निसार
नरेश एम. ए
ग़ज़ल
तलाश करती है दुनिया उसी के नक़्श-ए-क़दम
वही जो भीड़ में सब से जुदा दिखाई दे
बद्र-ए-आलम ख़ाँ आज़मी
ग़ज़ल
'परवीं' ग़लत है उन को समझना जुदा जुदा
हैं जिस्म-ओ-जाँ की तरह से दुनिया-ओ-दीं शरीक