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ग़ज़ल
दिल में जो बसाई थी वो तस्वीर नहीं है
ये हुस्न मिरे ख़्वाबों की ता'बीर नहीं है
अब्दुल मजीद ख़ाँ मजीद
शेर
मिरे दिल में है कि पूछूँ कभी मुर्शिद-ए-मुग़ाँ से
कि मिला जमाल-ए-साक़ी को ये तनतना कहाँ से
अब्दुल मजीद सालिक
समस्त
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ग़ज़ल
अब इस से बढ़ के मुझे और क्या सज़ा देगा
वो बन के दोस्त मिरा मुझ को ही दग़ा देगा