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ग़ज़ल
कि उस का फ़ोन तो अब रोज़ ही इंगेज जाता है
बताओ कब तलक बोलूँ मुझे धोका हुआ होगा
ऋतु सिंह राजपूत रीत
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नज़्म
ऐ मेरे सारे लोगो
संदलीं पाँव से मस्ताना-रवी रूठ गई
मरमरीं हाथों पे जल-बुझ गया अँगार-ए-हिना
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
तअ'ज्जुब क्या लगी जो आग ऐ 'सीमाब' सीने में
हज़ारों दिल में अंगारे भरे थे लग गई होगी
सीमाब अकबराबादी
नज़्म
तुम नहीं आए थे जब
दिल के बुझते हुए अँगारे को दहकाते हुए
ज़ुल्फ़-दर-ज़ुल्फ़ बिखर जाएगा फिर रात का रंग
अली सरदार जाफ़री
गीत
राख हुए जो दिल में जल कर वो अंगारे कौन चुने
तुम ने कितने सपने देखे मैं ने कितने गीत बुने
साहिर लुधियानवी
नज़्म
ईस्ट इंडिया कंपनी के फ़रज़ंदों से ख़िताब
दस्त-कारों के अंगूठे काटते फिरते थे तुम
सर्द लाशों से गढों को पाटते फिरते थे तुम
जोश मलीहाबादी
नज़्म
आधी रात
ये सर-निगूँ हैं सर-ए-शाख़ फूल गुड़हल के
कि जैसे बे-बुझे अंगारे ठंडे पड़ जाएँ